आजादी के आंदोलन से लेकर आपातकाल के मुश्किल दिनों तक… पीएम मोदी और अमित शाह ने ऐसे दी हिंदी दिवस की शुभकामनाएं

हर साल 14 सितंबर को हिंदी दिवस मनाया जाता है, आज राष्ट्रीय हिंदी दिवस की 76वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है. इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी और गृहमंत्री शाह ने देशवासियों को बधाई दी. पीएम मोदी ने एक्स पर पोस्ट के जरिए कहा कि हिंदी दिवस की आप सभी लोगों को हार्दिक शुभकामनाएं. हिंदी केवल भाषा ही नहीं, बल्कि हमारी संस्कृति, भावनाओं और पहचान की आत्मा है. इस दिन हम यह संकल्प लें कि हिंदी के साथ-साथ सभी भारतीय भाषाओं को और समृद्ध बनाएंगे और उन्हें आने वाली पीढ़ियों तक गर्व से पहुंचाएंगे. आज पूरी दुनिया में हिंदी का बढ़ता सम्मान हम सभी के लिए गर्व और प्रेरणा की बात है.

गृहमंत्री अमित शाह ने भी 76 वें हिंदी दिवस की शुभकामनाए दीं. उन्होंने कहा कि हिंदी दिवस की आप सभी को बधाई. हिंदी आज केवल संवाद का साधन नहीं, राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने वाली हिंदी बल्कि तकनीक, विज्ञान और शोध की भाषा के रूप में भी उभर रही है. आजादी की लड़ाई से लेकर आपातकाल जैसे कठिन समय तक, इसने देशवासियों को एकजुट रखने का काम किया है. हिंदी सभी भारतीय भाषाओं को साथ लेकर राष्ट्रीय एकता को मजबूत करती है और आने वाले समय में विकसित भारत और भाषाई आत्मनिर्भरता की राह में भी अपनी अहम भूमिका निभाती रहेगी.

भारतीय भाषाएं संस्कृति और एकता का प्रतीक

गृहमंत्री अमित शाह ने एक वीडियो संदेश जारी करते हुए कहा कि अपना भारत एक भाषा प्रधान देश है. हमारी भाषाएं सदियों से संस्कृति, इतिहास, परंपराओं, ज्ञान, दर्शन, विज्ञान और अध्यात्म को पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ाने का काम करती रहीं हैं. हिमालयों की उंचाइंयों से लेकर दक्षिण के विशाल समुद्रों तक, मरु भूमि से लेकर बीहड़ के जंगलों से गांव की चौपालों तक भाषाओं ने इंसानों को हर परिस्थिति में एकजुट और संगठित रहना सिखाया है. मिलकर चलों, मिलकर सोचों यही हमारी भाषाई सांस्कृतिक चेतना का मूल मंत्र है. भारतीय भाषाओं ने हर वर्ग के लोगों को अधिव्यक्ति का अवसर दिया है.

उन्होंने आगे कहा कि पूर्वोतर में बीहू का गान, तमिलनाडू में ओवियारु की आवाज, पंजाब में लोडड़ी के गीत, बिहार में विघापती की पदावली, बंगाल में बाउल संत के भजन, कजरी गीत, भिखारी ठाकुर की विदेशियां, इन सब ने हमारी संस्कृति को कल्याणकारी बनाया है. भाषाएं एकता के सूत्र में बंधकर आगे बढ़ रहीं हैं. संत तिरूवल्लुर को जितनी भावुकता के साथ दक्षिण में गाया जाता है, उतनी ही रुचि से उत्तर में पढ़ा जाता है. कृष्णदेव राय जितने दक्षिण में प्रिय हुए उतने ही उत्तर में भी हुए. सुब्रमण्यम भारती की रचनाएं राष्ट्र प्रेम को बढ़ाती हैं. गोस्वामी तुलसीदास को देश में पूजा जाता है. कबीर दास के दोहे तमिल, कन्नड़ और मलयालम अनुवादों में भी पाए जाते हैं. सूरदास की पदावली दक्षिण भारत के मंदिरों में प्रचलित है. शंकरदेव और माधवदेव को हर वैष्णव जानता है. भूपेंन हजारिका को हरियाणा का युवा गुनगुनाता है. अजादी के आंदोलन में हमारी भाषाओं की बड़ी भूमिका रही.

स्वाधीनता संग्राम में भाषाओं का योगदान

गृहमंत्री ने आगे कहा कि हमारे स्वाधीनता सैनानियों ने जनपदों की भाषाओं को गांव-देहातों की भाषा से जोड़ा. हिंदी के साथ ही सभी भाषाओं के कवियों, नाट्यकारों, साहित्यकारों ने लोकभाषाओं, लोककथाओं, लोकगीतों और लोकनाटक के माध्यम से समाज मे स्वाधीनता के संकल्प को प्रबल बनाया. वंदे मातरम और भारत माता की जय जैसे नारे हमारी भाषाई चेतना से ही निकले. 14 सितंबर 1449 को देवनागरी लिपि में लिखित हिंदी भाषा को राजभाषा के रूप में स्वीकार किया.

हिंदी और भारतीय भाषाओं का स्वर्णिम काल

गृहमंत्री अमित शाह आगे बताया कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में भारतीय भाषाओं और संस्कृति का स्वर्णिम काल आया है. चाहे से संयुक्त राज्य संघ का मंच हो, G-20 हो, SCO में संबोधन हो, पीएम मोदी ने हिंदी और भारतीय भाषाओं में संवाद कर भारतीय भाषाओं का स्वाभिमान बढ़ाया है. राजभाषा हिंदी ने 76 गौरवशाली वर्ष पूरे किए हैं. 2014 के बाद सरकारी काम में हिंदी के प्रयोग को बढ़ावा दिया गया है. हमारा लक्ष्य है कि हिंदी और अन्य भाषाएं तकनीक, विज्ञान, न्याय, शिक्षा और प्रशासन की धुरी बने. डिजिटल इंडिया, ई-गवर्नेंस, AI, और मशीन लर्निंग युग में हम भारतीय भाषाओं को वैश्विक स्तर पर मजबूत और तकनीकी करें. हिंदी दिवस के अवसर पर हम हिंदी के साथ-साथ अन्य भारतीय भाषाओं का सम्मान करें.

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