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शिमला। हिमाचल प्रदेश के कई इमारतों पर खतरा मंडरा रहा है। वह भूकंप झेलने की स्थिति में नहीं है। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि शिमला और अन्य पर्यटक स्थल जैसे मैक्लॉडगंज कसौली मनाली पालमपुर मंडी सोलन कहीं भी रिसॉर्ट उच्च तीव्रता वाले भूकंप का सामना नहीं कर सकते हैं और ताश के पत्तों की तरह ढह सकते हैं। वहीं हाल के वर्षों में हिमाचल में बादल फटना और आकस्मिक बाढ़ आम हो गया है। इस तरह की आपदाओं के कारण होने वाली भारी जनहानि के लिए मुख्य रूप से बढ़ती मानवीय गतिविधियों को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है।

इसके बावजूद हिमालयी राज्य के अधिकांश पिकनिक स्थल उच्च भूकंपीय क्षेत्र 4-5 में आते हैं स्थानीय अधिकारी अभी तक अपनी नींद से नहीं जागी हैं। नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल और राज्य उच्च न्यायालय ने पूरे हिमाचल में बढ़ते अनधिकृत निर्माणों की प्रतिक्रिया में कमी के लिए राज्य के अधिकारियों को बार-बार फटकार लगा दी है। राज्य में बुजुर्ग लोग इस दशा के लिए बीजेपी और कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। हिमाचल के रहने वाले अस्सी साल के बुजुर्ग शख्स का कहना है कि शिमला में इमारतें भले ही सुरक्षित हों या न हों लेकिन बेतरतीब ढंग से एक के बाद एक बढ़ रही हैं।

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अधिकारियों ने माना कि शिमला में 14 प्रमुख इलाके 70-80 डिग्री के औसत ढाल पर हैं जहां अधिकांश इमारतें उपनियमों और भवन निर्माण मानदंडों का सीधा उल्लंघन करती हैं। यहां तक कि उन्होंने भूकंपीय मानदंडों का भी पालन नहीं किया है। टाउन एंड कंट्री प्लानिंग विभाग के अधिकारी ने बताया कि शिमला में अधिकांश इमारतें खड़ी ढलानों पर अनिश्चित रूप से लटकी हैं और एक-दूसरे से चिपकी हुई हैं। मध्यम या उच्च तीव्रता का भूकंप ऐसी कुछ बस्तियों के लिए विनाशकारी होगा है जहां से निकलने का कोई रास्ता नहीं है।

अधिकतम 16000 की आबादी के लिए नियोजित शिमला में अब 250000 से अधिक लोगों का घर है। शिमला के पूर्व उप महापौर टिकेंद्र पंवार ने माना कि नगरपालिका सीमा के भीतर अस्पतालों सरकारी स्कूलों और कॉलेजों सहित 200 से अधिक सार्वजनिक उपयोगिता भवनों को भूकंपीय मजबूती की आवश्यकता है। विशेषज्ञों का अनुमान है कि अगर कोई बड़ा भूकंप आता है तब शिमला में 98 प्रतिशत से अधिक इमारतों के ढहने का अत्यधिक खतरा है। धर्मशाला के उपनगरों में स्थित मैक्लॉडगंज में तेजी से बढ़ते अवैध निर्माण से तिब्बती आध्यात्मिक नेता दलाई लामा के आवास पर खतरा मंडरा रहा है। विशेषज्ञों को डर है कि एक उच्च तीव्रता वाला भूकंप मैक्लोडगंज को मलबे के मकबरे में बदल सकता है। कांगड़ा जिले के मैक्लॉडगंज में लगभग 16 हजार निर्वासित तिब्बती रहते हैं और इतनी ही संख्या भारतीयों की भी है।

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