चतुर्दशी श्राद्ध आज, इस तिथि पर कौन से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए?

इस समय पितृ पक्ष चल रहा है और यह अवधि पूर्णरूप से पूर्वजों को समर्पित होता है. पितृ पक्ष को श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है, जिसकी शुरुआत 7 सितंबर 2025 से हुई थी. 2 अक्टूबर को सर्व पितृ अमावस्या पर इसका समापन हो जाएगा. पितृ पक्ष की हर तिथि किसी न किसी पूर्वजों का श्राद्ध करने के लिए समर्पित होती है. आज यानी 20 सितंबर को चतुर्दशी तिथि का श्राद्ध किया जाएगा. इस तिथि का पितृ पक्ष में विशेष महत्व माना गया है. आइए जानें कि इस तिथि पर कौन से पितरों का श्राद्ध करना चाहिए और किस शुभ मुहूर्त में करना चाहिए.
चतुर्दशी पर किसका श्राद्ध करें?
गरुड़ पुराण के अनुसार, चतुर्दशी तिथि पर श्राद्ध उन पितरों के लिए किया जाता है, जिनकी अकाल मृत्यु (जैसे दुर्घटना, हत्या, आत्महत्या आदि) हुई हो. वहीं, जिन पितरों की स्वाभाविक मृत्यु हुई हो, उन पितरों का श्राद्ध इस तिथि पर नहीं किया जाता है. चतुर्दशी श्राद्ध से संतुष्ट होकर पितर अपने वंशजों को सुख, समृद्धि, यश और लंबी आयु का आशीर्वाद देते हैं.
राहुकाल का रखें ध्यान
वैदिक पंचांग के मुताबिक, 20 सितंबर को राहुकाल का समय सुबह 9:11 मिनट से शुरू होकर सुबह 10:43 मिनट तक रहेगा. राहुकाल में श्राद्ध करने से बचना चाहिए. चतुर्दशी श्राद्ध को घट चतुर्दशी, घायल चतुर्दशी, और चौदस श्राद्ध भी कहा जाता है.
- कुतुप मुहूर्त:- सुबह 11:50 से लेकर दोपहर 12:39 बजे तक.
- रौहिण मुहूर्त:- दोपहर 12:39 से लेकर दोपहर 1:28 बजे तक.
- अपराह्न काल:- दोपहर 1:28 से लेकर दोपहर 3:54 बजे तक.
- अभिजीत मुहूर्त:- सुबह 11:32 से लेकर 12:22 बजे तक.
अकाल मृत्यु वालों का श्राद्ध
अकाल मृत्यु वाले पितरों का श्राद्ध और पिंडदान गया जी स्थित प्रेतशिला पर्वत पर करने का विधान है. प्रेतशिला पर्वत के शिखर पर एक वेदी है, जिसे प्रेतशिला वेदी कहते हैं. अकाल मृत्यु वाले पितरों का प्रेतशिला वेदी पर ही श्राद्ध और पिंडदान किया जाता है.
धार्मिक मान्यता के अनुसार, प्रेतशिला वेदी पर श्राद्ध और पिंडदान करने से अकाल मृत्यु वाले पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है. अकाल मृत्यु वाले पितरों का पिंडदान सत्तू से किया जाता है. प्रेतशिला वेदी पर सूर्यास्त के बाद ठहरने की मनाही है. ऐसे में यहां पर सूर्यास्त के बाद पिंडदान और श्राद्ध कर्म नहीं किया जाता है.