विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं को नौकरी में मिले छूट… सुप्रीम कोर्ट का सुनवाई से इनकार

विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के लिए ग्रुप C और D की नौकरियों में छूट की मांग की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया है. केंद्र सरकार की नौकरियों की भर्ती के लिए आयु में छूट की मांग की गई थी. इस मामले पर सुनवाई से इनकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिककर्ता से पूछा कि हमें इसमें हस्तक्षेप क्यों करना चाहिए?
ये सभी नीतिगत निर्णय हैं. विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के एक संगठन पनुन कश्मीर ट्रस्ट ने की ओर से ये याचिका दायर की गई थी. याचिका में कहा गया था कि जहां सिख विरोधी दंगों और 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों को इस तरह की छूट दी गई थी. उसी तरह की छूट इन्हें भी दी जानी चाहिए.
याचिका में क्या कहा गया?
पनुन कश्मीर ने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (PIL) दायर की थी. ये याचिका भारत के संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत दायर की गई थी. विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं के लिए ग्रुप सी और डी की आने वाली केंद्र सरकार की नौकरियों में भर्तियों में उम्र सीमा में छूट को लेकर ये याचिका दायर की गई थी.याचिका में कहा गया है कि 1984 के सिख विरोधी दंगों और 2002 के गुजरात दंगों के पीड़ितों को ऐसी छूट दी गई है,लेकिन विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं को इस तरह की कोई भी छूट नहीं मिली.
याचिका में यह भी कहा गया कि 1990 में घाटी में लक्षित नस्लीय सफाई और जबरन विस्थापन की वजह से बहुत से कश्मीरी उपेक्षित रहे. ऐसे में उपेक्षित कश्मीरी हिंदुओं को अभी तक इस तरह केसमान सकारात्मक उपायों का लाभ नहीं मिल सका और इससे वंचित रहे. याचिका में उल्लेख किया गया है कि कश्मीरी हिंदुओं को जनवरी 1990 में अपनी पैतृक भूमि से भागने के लिए मजबूर किया गया था.
इस वजह से तीन दशकों से ज्यादा समय तक उनके मौलिक अधिकारों का हनन हुआ है. याचिका में यह भी कहा गया कि विस्थापित कश्मीरी हिंदुओं की दूसरी पीढ़ी, जिन्होंनेशरणार्थी शिविरों और जगह-जगह बस्तियों में अपना समय बिताया है. अब उन्हें सरकारी नौकरियों में आयु सीमा के प्रतिबंधों की वजह से रोजगार में बाधाएं झेलनी पड़ रही हैं और उन्हें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. ऐसे में उन्हें ग्रुप सी और डी की नौकरियों में छूट दिया जाना चाहिए.